Kohlberg Theory of Moral Development Short Notes: सीटेट परीक्षा 2022 का आयोजन दिसंबर माह में किया जाएगा। ऑनलाइन मोड में आयोजित होने वाली इस पात्रता परीक्षा में देश भर से अभ्यर्थी शामिल होंगे। परीक्षा में अच्छे अंकों के साथ सफलता हासिल करने के लिए अभ्यर्थियों को चाहिए कि वह सभी टॉपिक्स को अच्छे से कवर करें । जिससे कि बेहतर परिणाम प्राप्त हो सके। इस आर्टिकल में हम शिक्षा मनोविज्ञान के अंतर्गत कोहलबर्ग के नैतिक विकास सिद्धांत से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण बिंदु आपके साथ शेयर कर रहे हैं, जो की परीक्षा की दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण है। इस टॉपिक से परीक्षा में हर साल प्रश्न पूछे जाते रहे हैं। ऐसे में अभ्यर्थियों के लिए इस टॉपिक से जुड़े सभी महत्वपूर्ण बिंदुओं को ध्यान से पढ़ना बहुत आवश्यक हो जाता है।
कोलबर्ग का नैतिक विकास का सिद्धांत (Kohlberg theory of moral development)
कोहलबर्ग अमेरिका के एक मनोवैज्ञानिक थे, जिन्होंने नैतिकता का सिद्धांत या नैतिक विकास का सिद्धांत दिया। कोहलवर्ग के सिद्धांतों को शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण स्थान प्रदान किया गया है कोहलबर्ग के अनुसार नैतिकता का कार्य छात्रों को सही और गलत के मध्य अंतर को स्पष्ट करना है।
नैतिकता (Morality)- यह वह गुण है जिससे हमें सही और गलत की पहचान होती है। बच्चा अपने सामाजिक परिवेश से ही अतिकता और अनैतिकता को जानता है।
कोहलबर्ग अपने प्रयोगों में छोटी कथाओं को उपस्थित करके उससे सम्बंधित नैतिक समस्यों के सम्बन्ध में प्रश्न पूछते थे ।
कोहलबर्ग ने नैतिकता को तीन स्तर में विभाजित किया था
(1) प्राक रूढ़िगत नैतिकता का स्तर (Pre Conventional Stage) [4-10 Year]
(2) रूढ़िगत नैतिकता का स्तर (Conventional Moral Stage) [10-13 Year ]
(3) उतर रूढ़िगत नैतिकता का स्तर (Post Conventional Stage) [13 above]
(1) प्राकरूढ़िगत नैतिकता का स्तर – इस अवस्था में नैतिकता का अर्थ बालक निरपेक्ष (absolute) रूप को ग्रहण करते है। बालकों को अनुशासन का महत्व समझाया जाता है। कोहलबर्ग ने इस स्तर को दो भागों में बाँटा है
(a) दंड और आज्ञा पालक उन्मुखता (Punishment and obedience Orientation)
कोहलबर्ग के विचार के अनुसार बालक द्वारा मान्य व्यवहार अपनाने का कारण पुरस्कार प्राप्त करना तथा दण्ड से बचना होता है। इस अवस्था में बच्चा मानता है कि समाज में बड़ें या माता-पिता नियमों का एक निष्चित मूल्यों का समूह देते है। बच्चे के अनूसार, उसे इन नियमों का पालन करना ही होगा। अगर उसने इसका पालन नहीं किया तो उसे दण्ड मिलेगा । उदाहरण- हिंज के चोरी करने पर बच्चों का यह सोचना कि हिंज का चोरी करना गलत था, क्योंकि अगर वह चोरी करेगा तो उसे सजा मिलेगी ।
(b) साधानात्मक सापेक्षता – उन्मुखता / वैयक्तिकता और विनिमय (Instrumental Relativist Orientation / Invidualism and Exchange) –
इस अवस्था में बच्चा अपनी आवश्यकताओं के प्रति सचेत रहता है और दूसरों के अधिकारों को भी समझने लगता है। इन्ही विचारों की वजह से वह दूसरो की आवश्यकताओं को पूरा करने के प्रयास पर समझौता करने के लिए तैयार हो जाता है। उदाहरणार्थ – यदि बच्चे को बोला जाता है तुम मेरी पीठ पर खुजली करो, मैं तुम्हारी पीठ पर करूंगा तो वह बच्चा मान लेता है।
(2) रुढिगत नैतिकता का स्तर(Conventional Moral Stage 10-13 वर्ष)
इस अवस्था में माता-पिता द्वारा दिये हुए ज्ञान में परिवर्तन होना शुरू हो जाता है। इस अवस्था में भी व्यक्ति के आचरण पर बाहरी नियन्त्रण रहता है। परन्तु अभिप्रेरणा आन्तरिक रहती है । कोहलबर्ग ने इस अवस्था को दो भागो में बांटा है ।
(a) अच्छा बच्चा / बच्ची बनने की उन्मुखता (Good Boy and Good Girl) – इस अवस्था में नैतिक व्यवहार वह समझा जाता है जो दूसरों को प्रसन्न करे और दूसरो द्वारा स्वीकृत हो। इस अवस्था में बच्चा दुसरो की नजरो में सिद्धि पाने की सोचता है। दूसरों की नजरो में अच्छा दिखाने के कारण, इस अवस्था का दूसरा नाम अंतवैयक्तिक (Interpersonal) सम्बन्ध भी है। अंतवैयक्तिक सम्बन्धों में हम दुसरों के बारे में सोचते है ।
(b) कानून एवं व्यवस्था उन्मुखता / प्राधिकरण और सामाजिक व्यवस्था बनाए रखने की उन्मुखता (Law and Order Orientation) – इस अवस्था में बच्चा समझने लगता है कि सामाजिक प्रक्रिया व्यक्तियों द्वारा अपनी इच्छा से कानून का सम्मान करने पर निर्भर करती है। इस अवस्था में बच्चा सत्य के सम्मान तथा सामाजिक व्यवस्था को बनाये रखने की भावना विकसित करता है ।बच्चा मानता है कि समाज के जो भी नियम, मूल्य, व्यवस्था आदि है वह उसे मानेगा ही मानेगा। इस अवस्था में बच्चा सोचता है कि भले ही कोई दूसरा कानून को न माने, किन्तु वह जरूर मानेगा। बच्चा समाज के नियमों का ध्यान में रखकर निर्णय लेगा कि क्या सही है और क्या गलत है?
उदाहरण- किसी बच्चे के पिता को चोट लगने के – बाद भी वह रेडलाइट को पार नहीं है, क्योंकि उसका मानना है कि उसको नियमों का पालन करना है। इस अवस्था में बच्चा मानता है कि समाज में जो भी कानून बनाए गए है, वह समाज के भले के लिए है। बच्चे समाज को बनाये रखने के लिए कानून व व्यवस्था का अनुसरण करते है।
(3) उतर रूढिगत नैतिकता (Post Conventional Stage) – इस अवस्था में व्यस्क चीजों की निर्धारित करना सीखकर उसके अनुसार काम करता है । इसकी दो अवस्थाएँ है
(a) समाजिक अनुंबध उन्मुखता (Social Contract Orientation) –
इस अवस्था में किशोरों का यह मानना होता है कि नियम लोगों के भले के लिए बनाए गए है, परन्तु अगर उस नियम से किसी के व्यक्तिगत मूल्यों को नुकसान पहुँचता है तो इन नियमों को तोड़ देना चाहिए उदाहरण किसी बच्चे के पिता को चोट लगने के बाद वह रेड़ लाइट को पार (क्रॉस) कर सकता है, क्योंकि उसके पिताजी ऐसा ने करने से मर सकते है। इस अवस्था में किशोर मानते है कि कानून समाज के लिए महत्त्वपूर्ण है, परन्तु इन्हें बदला जा सकता है।
(b) सार्वभौमिक नैतिक सिद्धान्त उन्मुखता (Universal Ethical Principles Orientation)-
इस अवस्था में नैतिकता व्यक्ति की अन्तः करण की ओर अग्रसर हो जाती है। अब बच्चे का आचरण दूसरों की प्रतिक्रियाओं का विचार किये बिना आन्तरिक आदेर्षो के द्वारा होता है। यहाँ किषोर दूसरों के विचारों तथा नैतिक प्रतिबन्धों (Legal Restrictions) से स्वतंत्र होकर अपने आंतरिक मानकों के अनुरूप व्यवहार करता है। कोहलबर्ग ने अपने नैतिक विकास के चरणों को सार्वभौमिक तथा अपरिवर्तनीय (Universal and Invarian) माना है।
कोहलबर्ग के सिद्धान्त की आलोचना (Criticism of Kohlberg theory)
(1) According to Carol Gilligan : Gilligan studied the theory of Kohlberg and found that Kohlberg’s theory is gender biased / discriminative / stereotyped because he has based his theory only on Hinz who is of male sex. Kohlberg included only makes in his research.
कैरोल गिलिकन के अनुसार- गिलिकन ने कोहलबर्ग सिद्धांत का अध्ययन किया और पाया कि कोहलबर्ग ने लैंगिक भेदभाव को बढ़ावा दिया है।
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